Saturday, December 10, 2016

मुद्रा के आविष्कार की अमर कहानी

कहानी काल्पनिक है, लेकिन क्या सच में ऐसा ही नहीं हुआ होगा?

एक बस्ती थी जिसमें करीब सौ लोग रहते थे.
कुछ अनाज उगाते, कुछ गाय-भेड पालते, कुछ मछलियाँ पकड़ते, कुछ कपडे बुनते-सीते, कुछ लकड़ी और लोहे का काम करके तरह-तरह की चीजें बनाते.
अपनी जरूरत की चीजें आपस में अदल-बदल कर काम चलाते.
लेकिन कभी-कभी कुछ दिक्कत आ जाती थी, जैसे जब किसी को जरूरत है कपडे की और उसके पास बदले में देने के लिए अनाज है लेकिन जिसके पास कपडा है उसे अंडे चाहिए.
अब इससे भी लोग जैसे तैसे निपट लेते थे जैसे कि पहले कपडे वाला अंडे वाले से अदला बदली करे फिर अनाज वाला अंडे वाले के पास जाकर कपडा ले आये.
चूंकि सब अदला-बदली ही करते थे इसलिए सबके पास कुछ न कुछ हर चीज पहुँच ही जाती थी और थोडा बहुत लोग जरूरत के हिसाब से भण्डारण भी कर लेते थे. लेकिन फिर भी इच्छित वस्तुओं को खोजने में उन्हें मशक्कत तो करनी ही पड़ती थी.

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एक दिन उस बस्ती में कोई एक बाहरी घुड़सवार आया.
उसने बस्ती के लोगों को समझाया-- "ये जो चीजों की अदला बदली में तुम्हें थोड़ी दिक्कत होती है उसका उपाय मेरे पास है." ---यह कहकर उसने हर बस्ती वाले को दस-दस छोटे पत्थर के टुकड़े दिए जिस पर एक ख़ास चिन्ह बना हुआ था और कहा कि जब भी तुम्हे कुछ चाहिये हो, चीजों को चीजों से नहीं इन टुकड़ों से बदलो.
लेकिन इसी के साथ उसने एक शर्त सुनाई. और कहा-- "मैं एक साल बाद लौटूंगा. और जब मैं लौटूंगा तो मुझे हर व्यक्ति दे दस के बदले ग्यारह पत्थर चाहिए.... पुराने पत्थर वापस लेकर दुबारा सबको एक साल के लिए दस-दस नए टुकड़े दे दिए जायेंगे और जो ग्यारह पत्थर नहीं दे सकेगा उसे अपनी संपत्ति का एक निश्चित हिस्सा मुझे देना पड़ेगा."
अपनी रोजमर्रा की परेशानी का फौरी हल निकलते पाकर लोग उसकी शर्त मान गये और घुडसवार चला गया. लोग अपने काम में लग गए.

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लोग अपने काम में लगे रहे, खाते-पीते, गाते, बजाते, नाचते उत्सव मनाते--जीवन सामान्य ढंग से चल रहा था. इसी तरह से साल पूरा होने को आ गया और घुड़सवार के वापस आने का भी समय हो हो गया और दस की जगह ग्यारह टुकड़े वापस करने का भी.
लेकिन लोगों पाया कि उनमे से सभी के पास ग्यारह टुकड़े तो है नहीं.. अदला बदली में कुछ के पास ज्यादा पहुँच गये हैं कुछ के पास कम रह गए हैं.
.. वैसे तो ग्यारह पत्थर हर के पास होने संभव भी नहीं थे क्योंकि हर एक को दिए तो दस ही गए थे ग्यारह कहाँ से आते?
अब जिनके पास पत्थर कम रह गए थे चुकाना तो उन्हें भी था इसलिए उन्होंने अपनी चीजों के बदले में ग्राहक से अधिक टुकड़े मांगने शुरू कर दिए.
यानि वस्तुओं के दाम बढा दिए.
फिर भी साल के अंत में,
किसी भी गणित से
हर बस्ती वाले के पास ग्यारह टुकड़े तो आ नहीं सकते थे,
क्योंकि वे तो कुल उतने ही थे
जितने कि घुड़सवार ने उन सब में बांटे थे .
नतीजा यह हुआ कि वायदे के मुताबिक जो सिक्के वापस नहीं कर सका उसे अपनी संपत्ति में से कुछ न कुछ उस घुडसवार को देना पड़ा.

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इस तरह, जो घुड़सवार पहले केवल पत्थर के कुछ चिन्हित टुकड़ों का मालिक था
साल भर में बस्ती की कुछ सम्पत्तियों का मालिक बन गया .
क्योंकि पूरे पत्थर न चुकाने की यवज में लोगों के पास से उनकी सम्पत्तियाँ घुड़सवार के पास चली गयीं थीं.
इस तरह समय बीतता रहा और लोग अपनी सम्पत्तियां गँवा कर, दूसरी गतिविधिया कम करके, टूकडे इकठ्ठा करने की होड़ में लग गए.
अब जिनके पास अधिक टुकड़े संग्रहीत होते वे अमीर और जिनके पास कम
हो पाते वे गरीब कहलाये जाने लगे. अब साल भर लोगों में पत्थर के उन टुकड़ों को संग्रह करने की होड़ भी लगने लग गयी .

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यही है चिन्हों यानि मुद्रा के संपत्ति में आसानी से बदल जानी की कहानी .
मुद्रा धन नहीं है लेकिन उसे धन समझ लिया गया है......
हमारे उपयोग की वस्तुएं और प्राकृतिक संसाधन ही वास्तव में धन है..
जरा इसी पैटर्न पर अपने चारों तरफ हो रही व्यापारिक गतिविधियों और संसाधनों की लूट और बैंकिंग व्यवस्था को देखिये और सोचिये .... क्या समझ में आता है ?
और अब उससे आगे ..................

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दूसरे साल के शुरू होते-होते बस्ती में नयी तरह की खलबली सी मचने लग गयी और सहज जीवन व्यवस्था में कई दिलचस्प परिवर्तन होने लगे.
अचानक ही पत्थर के उन चिन्हित टुकड़ों को हर कोई चाहने लगा था. उन्हें वास्तिवक जीवनोपयोगी वस्तुओं से अधिक प्यार करने लगा था.
लोगों में यह बोध और मान्यता पैदा होने लग गयी कि यदि आपके पास ये टुकड़े हैं तो आप कुछ भी उनके बदले हासिल कर सकते हैं. आपको अनाज उगाने, जानवर पालने, मछली पकड़ने या फिर कपडे बुनने की जरूरत नहीं; यदि आपके पास वे टुकड़े पर्याप्त हैं तो उनके बदले आप कोई भी चीज ले सकते हैं. इसलिए उन्हें इकठ्ठा करने के लिए हर कोई लालायित रहने लगा था.
जहां पहले हर व्यक्ति श्रम करके अपनी जरूरत की चीजें बनता या पैदा करता था वहीँ अब काम करने वालों की संख्या घटने लगी. नतीजतन चीजों का उत्पादन भी घटने लगा. इससे मांग और बढी और स्वाभाविक था कि जिनके पास वस्तुएं थीं उन्होंने दाम भी बढ़ा दिए.
इधर जिनकी संपत्ति का कुछ हिस्सा जा चुका था, उनकी भी उत्पादन क्षमता अब कम होने लग गयी थी.

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इस बार घुडसवार साल ख़त्म होने के पहले ही आया, और भी बहुत सारे चिन्हित पत्थर के टुकड़े लेकर और बस्ती वालों से बोला कि आपलोगों की परेशानी मुझसे देखी नहीं जाती ....तो ऐसा करो कि जिनके पास भी पत्थर कम पड रहे हों, वह मुझसे और ले ले और साल नही दो साल तीन या पांच साल बाद मुझे उसी पुराने हिसाब से बढा कर वापस कर दे.
फिर यह बात लोगों को जंच गयी और जिनके पास पत्थर कम हो गए थे या ख़त्म हो गए थे उन्होंने अपनी जमीन या घर की जमानत पर और टूकडे हासिल कर लिए.
अब चूँकि उत्पादन में पत्थरों की कोई सक्रिय भागीदारी तो थी नहीं और न ही वे किसी और इस्तेमाल में आ सकते थे इसलिए बस्ती के कुल उत्पादन पर केवल उतना ही असर पड़ा जितना अधिक लोग काम कर पाए.
लोगों ने अपने आराम और मनोरंजन के समय में कटौती की और काम का समय बढाया. इससे उनकी पारिवारिक और सामुदायिक जिंदगियां प्रभावित होनी शुरू हुयीं, और वे पहले की अपेक्षाकृत कम प्रसन्न रहने लगे, लेकिन उन्होंने फिर भी परवाह न की क्योंकि उनपर उत्पादन और विक्रय करके दिए समय के ख़त्म होने के पहले अधिक टुकड़े जमा करने का दबाव काम कर रहा था.

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इस तरह से विनिमय और उत्पादन के असंतुलन के चलते, अपना कर्ज चुकाने की प्रक्रिया में, कुछ साल बाद बस्ती में से कई लोगों के पास संपत्ति शून्य हो गयी, क्योंकि वे उसे घुड़सवार को दे चुके थे.
अब उनके पास बची थी तो केवल मेहनत कर सकने की शारीरिक क्षमता. फिर भी पत्थर के टुकड़ों की जरूरत कायम थी. इसलिए अब ये संपत्ति गँवा चुके लोग इनके बदले कुछ भी करने को तैयार थे.
इधर एक बाहरी घुडसवार के पास---जो कुछ भी लेकर बस्ती में लेकर नहीं आया था, सिवा पत्थर के कुछ चिन्हित टुकड़ों के-- संपत्ति जमा हो गयी और काम करने के लिए मजदूर भी उपलब्ध हो गए थे--जो पहले की व्यवस्था में नहीं थे.

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अब घुड़सवार बस्ती में ही रहने लगा. जब्त की गयी संपत्तियों पर अपने पत्थर के टुकड़ों के बदले लोगों से काम लेने लगा और उत्पादन भी करने लगा.
उसके पास अब गाँव के किसी भी परिवार से अधिक संपत्ति थी. वस्तुओं की सप्लाई पर उसी का नियंत्रण था. मजदूरों की जिंदगियों पर भी.
यानि पूँजी, श्रम, शोषण और गुलामी का पहले अध्याय लिखा जा चुका था.

1 comment:

  1. कहानी काल्पनिक है मगर बेहद रोचक....

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