Thursday, December 15, 2016

मुक्तबाजार: गुलामी का रंगीन फंदा- 2

ब्रिटिश भाई लोग मिटटी में ही थोड़ी खाद मिला गए थ, उसके बाद काम तो जरा धीमा हुआ लेकिन नतीजा आप देख ही रहे हैं कि १९४७ वाले गुजराती फ़कीर के जमाने को हमने २०१६ वाले गुजराती फ़कीर के जमाने में कैसे बदला?"
कल की पोस्ट पढ़ कर अमरीका मुस्कराया, मुझको बुलाया और मेरी नादानी पर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए मुझे जो समझाया वो आपको बताता हूँ, जान लीजिये, मुझे अभी तो अमरीका की बातों में दम लगता है. आज दिन भर उसके समझाए को सोचता हूँ, आज दिन में अगर उसकी बताई बातों का दम निकल गया तो कोई और राग अलापूंगा, नहीं तो आप सब के साथ मैं भी अमरीका की जय बोलूँगा. तो यह है जो उसने मुझे समझाया ---
दरअसल खुशहाली बांटने, गरीबी भगाने, लोगों को गुलामी से आजाद करने और पूरी दुनिया को गुलिस्तान बनाने के पीछे हम अपना सब कुछ दांव पर लगा देते है. जन कल्याण की भावना से ओत प्रोत हमारे जैसा औघड़ दानी देश धरती पर दूसरा कौन है? कोई बताये हमारे नेता, व्यापारी, दलाल औए यहाँ तक कि हमारी फिल्मो के हीरो भी लगातार दुनिया को बचाने और उन्हें आतंक और गुलामी से मुक्त करने में लगे रहते हैं.
लेकिन फिर भी कुछ लोग हैं जिन्हें यह हजम नहीं होता, वे हमारी सहायता न लेते, न लेना चाहते और एक रोटी और एक लंगोटी में, अपने जंगल जमीन और भेड बकरी के बीच मस्त पड़े रहते. यही अस्ल दुश्मन हैं. लेकिन चूँकि हम अपने दुश्मनों से प्यार करता है और उनसे तब तक नहीं लड़ता जबतक कि वे खुद ही, पहले हम को, हमारे ही दिए गए हथियारों से मारने धमकाने पर न उतर आयें.
जरा देखो तो आँख उठाकर आपको आदिवासी क्षेत्रों ऐसे लोग मिल जायेंगे हिन्दुस्तान में, अफ़्रीकी मुल्कों में, लैटिन अमरीकी देशों में, जो अपनी एक रोटी और एक लंगोटी के साथ मन भर स्वचालित हथियार उठाये हुए अपना दुश्मन खोजते हुए घूम रहे हैं और उसी हल्ले में अपने जैसे ही लोगों को मार रहे हैं. बदले में दूसरी तरफ के लोग भी वही काम कर रहे हैं, बस फर्क यही है कि दूसरे के पेट में सरकारी रोटी और तन पर सरकारी वर्दी है. चिड़ियों के शोर के बीच जब बमों का मोहक अट्टहास और गोलियों की हंसी फूट पड़ती है तो समझो हमारी जन कल्याण परियोजना के लिए जमीन जोती और तैयार की जा रही है. ऐसा हम उस जमीन पर करते है जहाँ अपने बंटाईदार पहले से तैनात हैं--याद तो होगा मोंट पेलेरें के रोबोट्स के बारे में?
वोन हायक और फ्रीडमन हमारे आदमी थे, स्विट्ज़रलैंड में मिले, सलाह मशविरा किया उन्नत खेती के बारे में. अब अपने ही मुंह से क्या अपनी तारीफ़ करना! फ्रीडमन इतना सयाना कि ऐडा स्मिथ के क्लासिकल एकोनोमिक्स का हेतना स्वादिष्ट कबाब बनाया और ऊपर से वो फैशन में रुदोफ़ वों जेर्रिंग वाली थ्योरी “ट्रिकल डाउन इफ़ेक्ट” की “थ्योरी ऑफ़ लेजर क्लास” में घोंट कर ऐसी चटनी तैयार की, कि साली दुनिया आज तक अंगुली चाट-चाट कर वाह वह कर रही है.
पर कुछ चट्टाने सख्त होती हैं तो वहाँ खुद जाना पड़ता है, अब खेती किसानी में कहाँ तक हाथ बचाया जाये? इधर मध्यएशिया वैसे ही पठारी इलाका है, इसलिए ससुरे बंटाईदार लेते ही नहीं और दूसरी तरफ रूसी डकैतों की घुसपैठ, दंगल जरा ज्यादा ही हो गया, लेकिन कसम से मजा बहुत आया! अब देखो सारे शांत हैं, खुश हैं, देखो पुल, सड़कें, बिल्डिगें--- लगे हैं अपने लोग लगे हैं काम हो रहा है, फिकर नॉट !
अब क्या है कि इधर हिन्दुस्तान को पाकिस्तान से उलझाए रख कर मत्थे की सिंकाई तो बहुत दिनों से चालू थी, बीच में थोडा पंजाब भी गरमाया, उधर पैरों की तरफ से काम पर लोगों को लगाया, बीच में अपने बंटाईदार थे ही, जमीन भी उतनी सख्त नहीं थी. दरअसल मुल्क आजाद करने के साथ ब्रिटिश भाई लोग मिटटी में ही थोड़ी खाद मिला गए थ, उसके बाद काम तो जरा धीमा हुआ लेकिन नतीजा आप देख ही रहे हैं कि १९४७ वाले गुजराती फ़कीर के जमाने को हमने २०१६ वाले गुजराती फ़कीर के जमाने में कैसे बदला ? :)
वैसे दाढ़ी-वाढ़ी रखकर लगते तो तुम समझदार हो लेकिन हो बिलकुल बौड़म !......इतना भी नहीं पता कि जैसी जमीन वैसी जुताई! जहाँ हमें जमीन के नीचे से गरीबी दूर करनी है वह हम जमीन पर उतरते हैं और जहाँ जमीन के ऊपर से गरीबी दूर करनी है वहाँ हम रिमोट से थोडा सा सिंकाई करते है और काम हो जाता है, अफगानिस्तान और ईराक-ईरान के इलाके पठारी हैं तो वहां जरा जमीन ज्यादा तोडनी पड़ी, तुम्हारे यहाँ तो पहले से ही खाद डालकर एक बार जुताई हो चुकी है !
तो मेरे प्यारे जिगर के टुकडे! पस्त नहीं मस्त रहो, हम और हमारे बंटाईदार लगे हुए हैं तुम्हारी खिदमत में !

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