Saturday, December 10, 2016

अर्थशास्त्र नहीं झटका शास्त्र--6: खाड़ी युद्ध से भरी गयी तिजोरियां

इसके पहले कि खाड़ी युद्ध के व्यापारिक निहितार्थ खोजे जाएँ, एक व्यक्ति का कैरिअर ग्राफ हमें शुरू से देखना होगा और वह है डोनाल्ड रम्ज़फिल्ड --मिल्टन फ्रीडमन का यह चेला मोंट पेलेरिन के उन आरम्भिक रोबोट्स में से एक था जो शुरुआत में ही अमेरिकी सरकार में इनस्टॉल किये गए थे और जिनका काम था अमेरिकी शासन तंत्र को पूंजीपतियों के लिए तैयार करना। डोनाल्ड रम्ज़फिल्ड. ने यह काम औरों की तुलना में अधिक कुशलता से निभाया ।
अब नीचे दी हुयी बातों का तारतम्य जोड़ते हुए इराक पर दूसरे अमेरिकी हमले तक आईये---
१. राष्ट्रपति चुनावों में हर कहीं से जीतते जा रहे प्रत्याशी अल गोर के विरुद्ध और जार्ज बुश जूनियर के पक्ष में फ्लोरिडा में धोखाधडी के फलस्वरूप जार्ज बुश का जीतना । जनता और अमेरिकी कांग्रेस में इसके विरुद्ध प्रबल विरोध को निरस्त करने हेतु सीनेट मेम्बेर्स की रहस्यमयी और न्यायपालिका के शीर्ष न्याय मूर्तियों की जार्ज बुश सीनियर के प्रति कृतज्ञता के कारण अपराधिक चुप्पी ।
२. दोनों जार्ज बुश राष्ट्रपतियों का सऊदी अरब के बिन लादेन परिवार के बहुत करीबी और सीधे लाभ के रिश्ते से जुड़ा होना ।
३. ट्विन टावर के ध्वस्त होने की रात सऊदी अरब के अमरीका स्थित राजदूत को ह्वाइट हाउस में डिनर के लिए आमंत्रित किया जाना और उसी रात को बिन लादेन परिवार के १३१ सदस्यों को अमरीका से चुपचाप चार्टर्ड हवाई जहाज से सऊदी अरब सुरक्षित भेज दिया जाना ।
४. हमले के ठीक एक दिन पहले डिफेंस सेक्रेटरी डोनाल्ड राम्ज्फिल्ड का यह ऐलान कि पेंटागन की अफसरशाही अब अमेरिकी डिफेंस के आधुनिकीकरण के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है ।
५. हमले की शाम अपने मातहत एजेंसियों को डोनाल्ड राम्ज्फिल्ड का यह निर्देश कि हमले के जिम्मेदार आतंकवादियों के छिपे होने की संभावनाएं इराक में तलाशी जायें ।
६. इराक पर हमले का परिमाण, जो की इतना बड़ा था की उसकी आलोचना अमेरिका के सबसे बड़े चमचे ब्रिटेन ने भी की तो राम्ज्फिल्ड ने इसकी जिम्मेदारी बड़ी चाला्की से अमेरिकी जनरल टॉमी फ्रैंक पर डाल दी ।
७. ९/११ के हमले पर अमेरिकी कांग्रस द्वारा नियुक्त जांच आयोग ने भी ऐसे कई महत्त्वपूर्ण सबूतों को नजरंदाज किया जो हमले की प्रचलित धारणा के विरुद्ध इशारा करते थे । जाँच के दौरान हुयी सुनवाई में केवल सुविधाजनक गवाहियों को पुरे अमेरिका में टेलीविजन पर दिखाया गया जब कि सभी असुविधाजनक गवाहिया बंद कमरे में ली गयीं और आयोग की अंतिम रिपोर्ट में उनका जिक्र तक नहीं किया गया ।
सारी बातों को मिला कर देखने से यह समझ पाना आसान है कि इराक और अफगा्निस्तान निशाने पर थे ही, बस सही बहाने का इन्तजार था और वह बहाना पैदा कर लिया गया । यह भी स्पष्ट है कि ओसामा बिन लादेन में अमेरिका को अच्छी सम्भावनाये शुरू में ही दिख गयीं थी और वह उसे उस सीमा तक चुपचाप पनपने देता रहा या पनपाता रहा जब तक कि वह इस्तेमाल लायक न बन जाये ।
वास्तव में अमेरिका का उद्देश्य इराक पर हमले के बहाने एक बड़ा युद्ध करके अपना बाजार कायम करके मुनाफा कमाना था ...साथ में दुनिया को यह बताना भी था कि उसकी सामरिक शक्ति के आगे कोई टिक नहीं सकता, इसीलिए ४००००० के करीब सैनिक युद्ध में उतारे गए । यह युद्धक सामग्री को अच्छी मात्रा में खपाने का एक मजबूत भी जरिया बना ।
इराक पर हमले का भयंकर रूप आम इराकी नागरिक और सद्दाम को तत्काल बदहवास करने के लिया रचा गया जिससे उनकी निर्णय क्षमता नष्ट हो जाये और हुआ भी वही । इराक को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया, नागरिक व्यवस्थाएं धूल में मिल गयीं । पर हमें युद्ध के विवरण में न जाते हुए केवल उसके कारणों और नतीजों के अंतर्संबंधों को देखना है जिससे इसके पीछे चली गयी आर्थिक चालों को समझा जा सके ।
इराक पर तिहरा झटका सिद्धांत अजमाया गया । पहला युद्ध से शासन व्यवस्था को नष्टप्राय कर नागरिको में भारी असंतोष, असुरक्षा और अराजकता पैदा करना, दूसरा आर्थिक पुनर्स्थापन के नाम पर सार्वजनिक धन की लूट और तीसरा युद्ध में बंदी बनाये गए सैनिको और सामान्य इराकियों के साथ क्रूरतम अमानवीय व्यवहार, जैसा अब हम देखेंगे ----
सद्दाम के पकड़ लिए जाने का बाद इराक में पुनर्निर्माण करने और नयी सरकार बनाने के पहले मई २००३ में अंतरिम प्रशासक के रूप में पॉल ब्रेमेर की नियुक्ति की गयी जिन्होंने आगे चल कर हर क्षेत्र में पुनर्निर्माण करने के लिए अमरीकी कंपनियों को ही न्योता और उन्हें सहायता राशि के पैसे दोनों हाथों से लुटाये । इस प्रक्रिया में पहले ब्रेमेर ने नए क़ानून बनाये जिसमे इराक में आने वाली कंपनियों को टैक्स में भरी छूट की घोषणा की गयी और उसके तुरंत बाद पांच लाख इराकी सरकारी कर्मचारियों को निकाल कर बाहर कर दिया गया जिससे सरकारी उपक्रमों पर निजी कब्ज़ा हो सके ।
उधर जार्ज बुश अपनी दरियादिली का ढोल अलग पीट रहा था .उसने घोषणा की कि इराक को पुनर्जीवित कर समृद्ध बनाना आज अमेरिका की सबसे बड़ी प्रतिबदधता है ।
लेकिन जमींन पर कुछ और ही हो रहा था। पुनर्निर्माण के लिए जो कम्पनियाँ आई उन्होंने ठेके लिए और बांटे न कि नए उपक्रम खड़े किये की जिनसे इराकी इंफ्रास्ट्रक्चर बनती और इराक समृद्ध होता। इराकियों को अत्यंत निम्न स्तर के काम में लगाया गया यहाँ तक कि कुशल इंजिनियर भी मजदूरों के स्तर पर कार्य करते पाए गए । इस सबके बीच चांदी किनकी थी?....जरा गौर कीजिये ----
१. क्रिएटिव असोसिअटस (१० करोड़ डॉलर) नए पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए 
२. बेअरिंग पॉइंट मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कंसल्टेंसी (२४ करोड़ डॉलर) मुक्त अर्थव्यवस्था का मॉडल तैयार करने के लिए 
३. RTI उत्तरी कैरोलिना (४६.६ करोड़ डॉलर) इराक में जनतंत्र की स्थापना कैसे की जाये इस बाई पर सलाह देने के लिए 
४. हेलिबरटन (२००० कारोड डालर ) विभिन्न निर्माणों के लिए
इसके अलावा १८.६ करोड़ डॉलर १४२ स्वास्थ्य केन्दों को बनाने के लिए बिजली संचार और पेय जल व्यवस्था को सही करने की लिया सैकड़ों करोड़ अलग से
मजे की बात यह रही की चार साल गुजर जाने के बाद भी कुछ भी सही नहीं हुआ....निर्माण आधे अधूरे रहे और बजट की लूट जारी रही यहाँ तक कि नयी इराकी मुद्रा भी देश के बाहर ही छपती रही ..यह हालत इसलिए लिए हुयी क्योंकि कोई भी एजेंसी काम करने से ज्यादा ठेके को आगे बढ़ने में और अपना मुनाफा काटने में रूचि रखती थी....हालत यहाँ तक थी ठेकेदारों के नीचे ठेकेदार और ठेकेदारों के ऊपर ठेकेदार , दायें और बाये भी ठेकेदार ही नजर आते थे..
इधर पुनर्निर्माण के नाम पर लूट जारी थी और उधर इराकी जनता को कोई राहत न पाकर प्रतिरोध करती रही, पिटती रही और गिरफ्तार होती रही और अमेरिकी कैम्पों में यातनाएं पाती रही.....
इतने सारे तांडव के बाद कोलिअशन फोर्सेज हट गयीं अमेरिका और ब्रिटेन ने बड़ी मासूमियत से "सॉरी" बोला पूरी दुनिया को कि भाई गलती से हमला हो गया हमसे क्या करे हमका माफ़ी दे दो, ..
अब इस सादगी पे कौन न मर जाये इनकी .......

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