Saturday, December 10, 2016

अर्थशास्त्र नहीं झटका शास्त्र--2: चिली के बाद शुरू हुए दूसरे खेल

आपको केवल दो तरह से ही कोई लूट सकता है--फुसलाकर या फिर डरा धमकाकर। रोजमर्रा की जिंदगी में झूठे वादों और मनभावन नारों से आप फुसलाये जाते हैं परन्तु जब बाजार में मंदी आने हो होती है तो राजा कोई न कोई ऐसा व्यूह रचता है कि मंदी दूर हो और व्यापारियों को पूंजी वृद्धि के लिए नए मौके मिलें।

यही काम देश में होता है। यही काम अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में होता है।

फुसलाने या फिर डराने-धमकाने----इन दोनों अवस्थाओं में मनुष्य की प्रतिरोधक और निर्णय शक्ति कमजोर या शून्य (चलिए सुन्न समझ लीजिये) हो जाती है। फुसलाने की कार्यवाही में वह अपनी वास्तविक स्थिति के कट कर भटक जाता है और तमाम गैर जरूरी उत्पाद खरीदता हुआ लुटता रहता है जबकि डरी हुई अवस्था में वह आपद्धर्म की आड़ में या विकल्पहीनता के चलते कुछ भी स्वीकारने को आसानी से तैयार हो जाता है।

चूँकि हम अभी झटका सिद्धांत की बात कर रहे हैं तो इसलिए अपनी बात डरने-डराने की कार्यवाही, उसके तौर-तरीकों और उदाहरणों पर ही केंद्रित रखेंगे। नोबेल पुरस्कार से नवाजे गए मिल्टन फ्रीडमन अपने संगठन के माध्यम से यह पोंगा और भ्रामक सिद्धांत प्रचारित करने में सफल हुए कि "शासन द्वारा खुली छूट मिलने पर अर्थव्यवस्था अपने को स्वयं नियोजित करती चलती है और किसी संकट कालीन अवस्था में भी अपने विकल्प स्वयं ढूंढ लेती है।" इसी के साथ उन्होंने इस समीकरण को उलट कर दूसरी तरफ से भी सिद्ध करना शुरू कर दिया कि "संकटकालीन अवस्था ही अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सबसे अधिक मुफीद पड़ती है।"

उनकी यह उलटवाँसी अमेरिकी पूंजीपतियों की नजर में चिली के प्रयोग दौरान सही साबित भी हो गयी, इसलिए पूँजी के संसार ने इसे एकदम से लपक लिया और उसका ध्यान सामान्य व्यापार से थोड़ा हट कर इस बात पर भी लगने लगा कि विश्व में संकट कहाँ है?--और यदि नहीं है कब, कहाँ और कैसे उसे वाजिब खर्च में पैदा किया जा सकता है। अब देखिये की चिली में सफल होने के बाद किस तरह दुनिया में संकटों का व्यापार शुरू हुआ और दनादन सफल होता हुआ आज भी जारी है।

सरकारी नियंत्रण से मुक्त अर्थात खुले बाजार के वकील कभी भी चिली की बात नहीं करते। वे हमेशा रीगन और थैचर के युग से अपनी रामायण बांचना शुरू करते हैं क्योंकि चिली की बात करते ही उनके नाखून काढ़ने की प्रक्रिया दिखने लगती है। जब कि रीगन और थैचर से बात शुरू करने पर वह ढक जाती है। क्योंकि रीगन और थैचर द्वारा संकट पैदा करने के लिए विध्वंस की कार्यवहियाँ देशभक्ति या अन्तरराष्ट्रीय शांति स्थापित करने के प्रयासों की आड़ लेकर की गयी थीं और उनकी स्वीकार्यता के लिए संगठित प्रचार तंत्र काम में लिया गया था। जब कि चिली में यह काम कुछ नौसिखिये ढंग से किया गया था और वहां की तोड़ फोड़ को सही साबित करने के लिए कोई झूठा या सच्चा बहाना पहले से ईजाद नहीं हो पाया था।

चिली के बाद शिकागो के मुक्त बाजार वादियों ने अमेरिकी सरकार की मदद से ब्राज़ील, उरुग्वे और अर्जेंटीना में अपना खेल दिखाना शुरू किया जिसकी परिणति १९७६ में अर्जेंटीना के हिंसक तख्ता पलट के रूप में हुई और इसके दौरान भारी संख्या में छात्रों, बुद्धिजीवियों और कामगार यूनियन के लोगो को भयंकर अमानवीय यातनाएं देते हुए मौत के घात उतार दिया गया। उस समय के सेक्रेटरी ऑफ़ डिफेंस डोनाल्ड रमजफील्ड की योजना के अनुसार इन संहारों के फलस्वरूप अनाथ हुए अबोध और गर्भवती महिला कैदियों के जन्मे बच्चों को राज्य के संरक्षण में लेकर सैनिकों और जासूसों के रूप में ट्रैन किया गया। जाहिर है कि इन बच्चों की कोई सांस्कृतिक, सामाजिक या पारिवारिक स्मृति न होने के कारण इन्हे जान पर खेल जाने या किसी भी कार्यवाही में किसी किभी तरफ से युद्ध या जासूसी में झोंका जा सकता था; और बाद में किया भी यही गया।
अब एक बात यहां ख़ास तौर पर याद रखने ही है कि आतंक के साये और तानाशाही व्यवस्था में ही लैटिन अमेरिकी देशों में मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था को लागू किया जा सका था; जब आम लोगों की प्रतिरोधक और निर्णय शक्ति अपने निम्नतम स्तर पर थी।

साथ में यह भी याद रखिये कि इन्हीं डोनाल्ड रमजफील्ड ने बाद के दशकों में अमेरिका द्वारा मध्यएशिया और दूसरे हिस्सोंमें फैलाई गयी विध्वंसक कार्यवाहियों में कितनी जरुरी भूमिका निभायी।

उन दिनों से रोज सुबह सरसरी तौर पर भी अगर आप अखबार पढ़ते रहे हैं या फिर पीछे पलट कर सिर्फ मोटी मोटी घटनाओं के क्रम को तलाश लें तो आपको बड़े आराम से यह दिख जायेगा कि पहले किस प्रकार युद्ध या आर्थिक नाके बंदी के बहाने संकट पैदा करके लोगों की निर्णायक और प्रतिरोधक शक्तियां क्षीण की जाती हैं, राजनैतिक उथल पुथल पैदा की जाती है और फिर उनकी जमीन पर मनमर्जी का व्यापार खड़ा किया जाता है, जिसका वितान वेश्यावृत्ति से लेकर तमाम गैर जरूरी दैनिक उत्पादों, हथियारों की विक्री और निर्माण उद्योग तक फैला-फूला है।

तीन उदाहरण ही काफी होंगे-मध्यएशिया, ब्रिटेन और रूस--जिनकी संक्षेप में चर्चा हम शुक्रवार को करेंगे। संक्षेप में इसलिए कि इस पोस्ट का उद्देश्य आपको सिर्फ चीजों की रुपरेखा बताना है, इनके आपसी रिश्तों को साफ़ और स्पष्ट करते हुए; जिससे आप आज के हिन्दुस्तान में हो रही घटनाओं में वह साजिश पता कर सकें जो कश्मीर, पाकिस्तान, हिन्दू-मुसलमान, अम्बानी-अडानी, मेक-इन-इंडिया, बुलेट ट्रैन और विध्वंसक विकास के नारों की आड़ लेकर हो रही है।

राजनीति, पत्रकारिता, मनोरंजन, साहित्य के अलावा जन-जीवन के दूसरे क्षेत्रों में ऐसे प्रयास लगातार हो रहे हैं जो हमारे सहज बोध को समाप्त कर, निर्णय शक्ति और प्रतिरोध को कुंद करने का काम कर रहे हैं। .

हमारे यहाँ अभी यह फुसलाने का दौर है, फुसलाकर लूटने का, यदि हम उनके फुसलाने में नहीं आये तो हिंसा भी प्रायोजित की जा सकती है।

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