Sunday, December 11, 2016

अर्थशास्त्र नहीं झटका शास्त्र--7: जरूरी है झटके साथ लटका !

असंतोष और विद्रोह न पनपे, इसलिए झटके के साथ लटका जरुरी है !धर्म का लटका , जाति का लटका, क्षेत्र का लटका, देशभक्ति का लटका, काल्पनिक दुश्मनों का लटका, ऐतिहासिक दुश्मनियों का लटका. लटका पहले से न मौजूद हो तो अपने कसीदेकारों से उसे बनवाया जाये, और ऐन झटका देने के पहले उसे झालर की तरह लोगों को पहनाया जाये.
यह बात दुनिया जानती है कि भारतीय जनता पार्टी संघ की खाद पानी से उगी हुई पार्टी है...बावजूद ऐसे औपचारिक वक्तव्यों के कि "संघ एक सांस्कृतिक संगठन है"
यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि संघ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कभी कोई योगदान नहीं रहा और इसके नेता गिरफ्तारी से बचने और छूटने के लिए अंग्रेजों से लेकर इंदिरागांधी तक से लिखित माफ़ी मांगते रहे और सहयोग का वायदा करते रहे. थोडा कम प्रकाशित लेकिन लेकिन रेकार्डेड तथ्य है कि द्विराष्ट्र सिद्धांत भी इसी विचारधारा की देन है.
संघ कभी कोई आंदोलन प्रत्यक्ष नहीं करता लेकिन समाज से उपजे आन्दोलनों को गोद लेने में निपुण है. 1977 में अपातकाल के बाद उपजे जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन को नानाजी देशमुख ने सफलता पूर्वक गोद लिया और जनता पार्टी में अपने राजनीतिक घटक जनसंघ को प्रमुखता दिलाई.
जनता पार्टी के टूटने बिखरने के बाद बनी हुई भारतीय जनता पार्टी बिना मुद्दों के और उसके नेता बिना किसी विशेष पहचान के साल दो साल लटकते रहे और इसी बीच संघ ने विश्वहिंदू परिषद् के माध्यम से रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के सुप्त मसले को हवा देने की कार्यवाही शुरु की.
1980-81 में रसीदें छपी और अयोध्या समेत सारे देश से चंदा इकठ्ठा किया जाने लगा और तीन चार साल बाद लालकृष्ण अडवानी को आगे करके रथयात्रा निकाली गयी जिसकी परिणति बाबरी मस्जिद विध्वंस में हुयी और उसके दुष्परिणाम, मुंबई बम काण्ड से लेकर गुजरात दंगों तक दिखाई दिए.
फिर तो सिलसिला चल निकला और पार्टी को जमीन मिलनी शुरू हो गयी.
संघ के अन्दर यह ख़ास बात है कि वह लम्बे लक्ष्य बना कर उस पर सुनियोजित काम करता है... जिसके परिणाम भले देर से, पर निश्चित आते हैं. वह अपनी विध्वंसकारी और विभाजनकारी नीतियों को प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू संस्कृति और अब देशभक्ति के लासे में लपेटे रखता है.
देश और समाज के माहौल को हमेशा गर्म रखना उसकी नीति है ..और भाजपा भी यही नीति सदा अपनाती रही है. मूल रूप से या वही झटका सिद्धांत है जिसका प्रयोग अमरीका कई दशकों से करता आया है और इसके उदहारण आप अर्थशास्त्र नहीं झटका शास्त्र--1 से लेकर 6 तक की पिछली  किश्तों में पढ़ सकते हैं.
अपने अवसरवादी सहयोगियों के साथ केंद्र में सरकार चला लेने के बाद, कई राज्यों में बहुमत से काबिज हो लेने के भी बाद आखिरकार 2014 में वह दिन भी आ गया जब संघ का एक पूर्णकालिक घोषित कार्यकर्ता पूर्ण बहुमत से देश के शासन पर काबिज हो गया.
इसके लिए उसे अन्ना हजारे को गोद लेना पड़ा.. आपको शायद मालूम न हो लेकिन अन्ना को संघ ने 1988 के पहले से ही अपनाना शुरू कर दिया था जब के. सी. सुदर्शन ने उनकी रालेगण सिन्धी की उपलब्धियों पर एक किताब लिखी थी और उसे संघ के आधिकारिक प्रकाशन ने छापा था.
जयप्रकाश नारायण की तरह अन्ना के आन्दोलन को आधार बना कर लड़ी गयी लड़ाई, कांग्रेस की कूढमगजी, मित्याभिमान और नेतृत्व विहीनता के चलते कामयाब हुयी और भविष्य की सम्भावनाओं को देखते हुए नरेन्द्र मोदी पर देश के थैलीशाहों ने भारी इन्वेस्टमेंट की और  झटकों का सीरियल सही क्लाइमेक्स पर पहुँच गया.
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असंतोष और विद्रोह न पनपे, इसलिए झटके के साथ लटका जरुरी है !
धर्म का लटका , जाति का लटका, क्षेत्र का लटका, देशभक्ति का लटका, काल्पनिक दुश्मनों का लटका, ऐतिहासिक दुश्मनियों का लटका. लटका पहले से न मौजूद हो तो अपने कसीदेकारों से उसे बनवाया जाये, और ऐन झटका देने के पहले उसे झालर की तरह लोगों को पहनाया जाये.
जिससे झटके और धक्के की चोट से पैदा रुदन और चीखें लटके की खनखनाहट में दब जाएँ या फिर उन्हें बेसुरा कह कर दबा देना उचित माना जाए.
संघ और भाजपा के शासनकाल और नेतृत्व में ऐसे असंख्य झटके मिलेंगे और हर झटके के साथ एक-एक लटका मिलेगा, और झटके से पैदा रुदन और चीखों को दबाने की उचित सी लगने वाली कार्यवाही भी मिलेगी.
उदाहरणों पर समय और स्थान खर्च करने की जरूरत नहीं, आप स्वयं अपनी स्मृतियाँ और अखबार खंगालिए और गिन लीजिये.
नोट बंदी इसी तरह का एक झटका है. और काले धन के विरुद्ध अभियान इसका लटका है,
क्योंकि काले धन से निपटने के दूसरे और अपेक्षाकृत सुगम उपाय नहीं किये गए.
और न ही नोट बंदी के साथ आवश्यक पूरक उपाय अपनाये गए.
वाजिब तैयारी भी नहीं की गयी और पूरी कार्यवाही को आकस्मात और नाटकीय बनाया गया. साथ में यह गुन्जाइश भी रखी गयी कि ड्रामा कुछ अधिक समय तक चले और लोगों की स्मृति में गहरे तक जाए.
और इस पर काले धन के विरुद्ध, मोर्चा खोलने का सफ़ेद रंग-रोगन चढ़ाया जाये.
जो लोग अभी इस झटके साथ पिरोये गए लटके को ही सत्य मानते हैं, वे भी कुछ समय बाद असलियत समझ जायेंगे जब आर्थिक मोर्चे पर इसका कोई स्पष्ट सकारात्मक प्रभाव नहीं दिखेगा;
आज तो खैर दिख भी नहीं रहा ! 
 ...लेकिन तब तक कुछ और मसला गर्म कर दिया जायेगा या फिर ठीकरा फोड़ने के लिए कोई सिर ढूँढ लिया जायेगा.  

2 comments:

  1. क्या बात है गुरु जबरजस्त ज्ञान झटका शास्त्र का _/\_

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  2. भाई अर्थसत्ता ब्लाक हुयी तो ब्लॉग शरू किया साल के अंत तक किताब लिख लेंगे

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