Saturday, December 10, 2016

अर्थशास्त्र नहीं झटका शास्त्र--3: थैचर के बिग बैंग के झटके से तबाह ब्रिटेन

चिली और ब्राज़ील में इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के बाद मिल्टन फ्रीडमन और उनके सहयोगियों का दबदबा बन चुका था। वे अब यह भी प्रचारित करने में लग गए कि पूँजी की स्वतंत्रता ही व्यक्ति की स्वतंत्रता को पुष्ट करती है। स्वतंत्रता के नाम पर राज्य द्वारा लुटेरों को खुली छूट तभी मिल जाती लेकिन १९७१ में अमरीका में पुनः मंदी छाने लगी थी और राष्ट्रपति का चुनाव नजदीक आ रहा था। निक्सन ---जो कि फ्रीडमन के करीबी थे और डोनाल्ड रमजफील्ड समेत दर्जनो शिकागो स्कूल के लोगों को अपनी सरकार में नियुक्त कर रखा था ---चुनाव जीतने के लिए यहाँ फ्रीडमन की नीतियों से यू-टर्न ले लिया। उन्होंने अपने देश में सरकारी सख्ती करते हुए मूल्य नियंत्रण की नीति अपनायी। ऐन चुनाव के पहले उसका असर भी हुआ और वे भारी बहुमत से जीत गए।
ध्यान देने की बात यह है कि लैटिन अमेरिका के जिन देशों में मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था थोपी गयी वहां या तो फौजी तानाशाही थी या उसे हिंसा द्वारा स्थापित किया गया था। इसी से इसके पैरोकारों का छल स्पष्ट हो जाता है, जो यह कहते रहे हैं कि इससे सभी स्वतंत्र और संपन्न बनेंगे। दरअसल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में यह जनता के साथ की गयी एक अपराधिक कार्यवाही थी।
निक्सन और उनके बाद फोर्ड के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में फ्रीडमन के गुर्गों ने गहरी पैठ बनायी और अपनी पकड़ मजबूत की, जिसका असर १९८० में रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति बनाने के बाद स्पष्ट रूप से दिखने लगा।
इसी बीच ब्रिटेन में १९७९ में मार्गरेट थैचर प्रधानमंत्री चुनी जा चुकी थीं; जिनके गुरु फ्रेडरिक वोन हायेक थे, जो कि फ्रीडमन के भी गुरु थे और मोंट पेलेरिन सोसाइटी के कर्ता-धर्ता भी। रीगन के साथ फ्रीडमन और इधर थैचर के साथ वोन हायेक ने मिलकर अमेरिका और ब्रिटेन दोनों देशों ने समूचे विश्व में "झटका सिद्धांत" का प्रयोग दोहराया और मुक्त अर्थ व्यवस्था का बीज रोपते गए जो आज विकराल रूप ले चुका है।
थैचर ने आते ही न केवल कॉर्पोरेट टैक्स कम किये, सरकारी खर्चों में भी कटौती की वरन बड़े पैमाने पर सरकारी और अर्ध सरकारी उद्यमों को डिसइनवेस्टमेंट के माध्यम से पूंजीपतियों को सौंपने का क्रम चालू किया। नतीजा बेरोजगारी दुगुनी हुयी और ब्रिटेन में हड़तालें शुरू हो गयीं। अब थैचर की घटती लोकप्रियता को वापस लाने और उभरते जन असंतोष को दबाने या भटकाने का समय आ गया था इसलिए जनता को झटका देने की तैयारी की जाने लगी। झटके की कामयाबी के जरूरी था कि पहले कोई मुसीबत पैदा की जाये या किसी छोटी मुसीबत को बढ़ा कर इतना बड़ा किया जाये की जनता घरेलू परेशानिया भूल कर उन पर ध्यान लगा दे।
इसलिए १९८२ का फ़ॉकलैंड युद्ध काम आया। फ़ॉकलैंड ब्रिटेन से हजारों किलोमीटर दूर अर्जेंटीना के पास एक द्वीप समूह है जिस पर अर्जेंटीना के दखल को बहाना बनाकर ब्रिटेन एक बेहद गैरजरूरी युध्द में कूद पड़ा। घरेलू क्षेत्र में फेल होती थैचर सरकार को देशभक्ति का डंका बजाने का यह सुनहरा अवसर था।
जाहिर है की लड़ाई दो ढाई महीने में ही खत्म हो गयी और बिगड़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोगारी के बीच थैचर ब्रिटेन की "लौह महिला" कहलायीं, जिसके परिणाम स्वरुप १९८३ के चुनाव में फिर उन्हें भारी जीत मिली। यानि जो समस्या राजनयिक प्रयासों से सुलझाई जा सकती थी उसके लिए एक अपेक्षाकृत कमजोर मुल्क से युद्ध करके हीरोगिरी दिखाना काम कर गया और जनता फर्जी देशभक्ति के उबाल में अपनी तकलीफें फिलहाल भूल गयी। फाकलैंड युद्ध न होता तो थैचर का चुनाव जीतना ही असंभव होता।
क्या आपको अपने यहाँ खेल जा रहा देशभक्ति का नाटक सरकार की आर्थिक मोर्चों पर असफलता को छुपाने का प्रयास नहीं लगता ?
दुबारा चुनाव जीतते ही थैचर ने अपने रंग दिखने शुरू कर दिए। १९८४ में ब्रिटेन में हुयी खदान मजदूरों की जायज और ब्रिटेन की सबसे बड़ी हड़ताल को पूरी शक्ति से इस "लौह महिला" ने कुचल दिया। इसके बाद "मोंट पेलेरिन" के एक वफादार रोबोट के तौर पर सरकार को कंगाल करने का दौर शुरू हुआ। सरकारी प्रचार तंत्र को इस्तेमाल करते हुए चमकदार विज्ञापन बनाये गए जिसको "बिग बैंग" कहा गया। लुभावने विज्ञापनों से जनता को यह सन्देश पहुचाया गया कि ब्रिटेन तरक्की और सम्पन्नता के एक नए युग में प्रवेश कर रहा है, जो कि सरासर झूठ था क्योंकि बेरोजगारी और बजट घाटा सुरसा की तरह उत्तरोत्तर बढ़ रहा था और बढ़ता ही गया ।
लुभावनी विज्ञापनबाजी की आड़ में एक-एक करके सारे सरकारी उपक्रम डिसइंवेस्ट किये गए। सबसे पहले स्टील उद्योग पूंजीपतियों के हवाले किया गया। फिर जल, बिजली, गैस, टेलेफोन, एयरलाइन, तेल और खनन एक एक करके "बिग बैंग" के तहत प्राइवेट सेक्टर में दे दिए गए।
थैचर और उधर रोनाल्ड रीगन दोनों ने इसे कभी गलत आर्थिक कदम नहीं माना बल्कि इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मुक्त समाज का परिचायक कह कर प्रचारित किया। रीगन ने तो यहाँ तक कहा कि हमारा यह स्वतंत्रता अभियान तब तक नहीं रुकेगा जब तक कि कम्युनिस्ट मुल्कों की तानाशाही और गुलामी को हम समाप्त करके व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दिला देते।
अब ब्रिटिश और अमेरिकी पूंजीपतियों को फायदा पहुचाने के लिए कैसे अफगानिस्तान और इराक पर लड़ाई छेड़ी गयी और कैसे रूस में गोर्वाचोव को मजबूर किया जा सका ये कल ......... ।

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