Friday, January 13, 2017

मुक्त बाजार से मुक्ति-2: ठेंगा दिखाइए

पिछले साल के आखिरी दिन मैंने कहा था कि आपके जीवन के हर पहलू का शोषण कर रही इस छल-कपट और ढोंग पर आधारित अर्थव्यवस्था का सामाधान सीधा है पर आसान नहीं है. अब एक-एक करके उन उपायों पर गौर करते हैं जो हम अपनी तौर पर अपना सकते हैं.
आसान नहीं है अपने चारों ओर लहलहाती लालच की खेती से आँखें मूँद लेना और जीवन में सहजता ले आना, जबकि व्यक्तिगत स्तर पर सबसे प्रभावी यही उपाय है जिसका दायरा बढाकर सामूहिक किया जा सकता है. आर्थिकी की सही समझ को प्रसारित करना होगा और अधिक से अधिक लोगों को इसके दायरे में लाना होगा. उन्हें यह बताना होगा कि मुद्रा धन नहीं है बल्कि धन को लूटने का साम्राज्य के विस्तार का हथियार है. हमारे जंगल, जल और खनिज स्रोत, उपजाया गया अन्न और सामान्य जीवन यापन के अन्य उपादान ही धन हैं, जिन पर कब्जे के लिए कर्पोरेट्स लगातार कोशिश कर रहे हैं और चंदाखोर सरकारों के माध्यम से कामयाब भी हो रहे हैं. अपनी जीवन शैली में अधिकतम बदलाव लाईये और इन्हें बाकायदा ठेंगा दिखाईये.
लालच पर लगाम लगते और उपभोग कम होने के साथ ही खर्च पर काबू हो जायेगा. जब अधिक से अधिक लोग ऐसा करेंगे तो अर्थव्यवस्था का तेजी से घूमता पहिया धीमा होगा. जाहिर है इसके बाद सरकार और पूंजीपतियों/व्यापारियों की तरफ से अपने माल को खपाने की कोशिशें भी तेज होंगी लेकिन यही मोर्चा है और इस मोर्चे पर सामान्य जन उन्हें मात्र संयम और समझदारी से हरा सकते हैं. जब संयम ऊपर से आरोपित नहीं बल्कि सही समझ से पैदा होता है तभी वह मजबूत होता है. 
यह पहला कदम है, किसी भी प्रकार के मुखर विरोध से पहले का कदम, अन्यथा वे आपके विरोध के प्रयासों को भी अपनी वित्त पोषित NGOs के द्वारा प्रायोजित करके कब्जिया लेंगे और आप देखते रह जायेंगे, जैसा आज तक होता आया है.
इस पहले कदम के परिपक्व होने के बाद ही वास्ताविक विरोध की शुरुआत की जा सकती है.  विरोध के तौर-तरीके क्या हों इस पर गौर करने के पहले ठेंगा क्यों दिखाया जाए इस पर  विस्तार करते हैं ..
ठेंगा दिखाने का कारण -1
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फ़िएट मनी (यानि जिस मुद्रा को छापने के लिए उसके बराबर सोना आरक्षित रखना जरूरी न हो, आज पूरे संसार में फ़िएट मनी ही चलन में है) की सप्लाई, देश के कृषि और औद्योगिक उत्पादन के मुकबले में, सिस्टम में जितनी ज्यादा बढ़ेगी उसी अनुपात में मुद्रा स्फीति भी बढ़ेगी. इस पर सरकारें, बैंक और व्यापारी चाहते हैं कि आप उपभोग बढाएं, बचत की बजाय खर्च अधिक करें, बेशक कर्ज लेकर करें. अंधाधुंध प्रचार से बदले सामाजिक बोध के चलते कर्ज लेना अब कोई प्रतिष्ठा गवाने वाला काम नहीं रहा. EMI की जिन्दगी हमें आसान लगने लगी है. हमारे जीवन में वह चीजें काफी पहले आने लगी हैं जिन्हें हम पूरी जिंदगी की बचत के बाद ही शायद खरीद पाते. इसको सब लोग प्रगति कहते हैं.
अब जरा सोचिये, मुनाफा और व्याज जो हमारी मान्यता में आज सबसे जायज तत्त्व है, मुद्रा की चाल के साथ मिल कर कैसे खेल करता है और उसका अंतिम परिणाम क्या होता है. क्या हो सकता है. यहाँ पर घुड़सवार की कहानी फिर याद कीजिये.
आपने बैंक से कर्ज लेकर कार खरीदी, कार आपकी जरूरत थी या विलासिता या लालच---ये आप तय करें, लेकिन आपने कार खरीदी और इस्तेमाल करके खुश हैं. बैंक अपना ब्याज पाकर खुश है. कार बनाने वाली कंपनी भी अपना मुनाफा पाकर खुश है, फिर परेशानी किसको है? लेकिन परेशानी तो है और दिनों दिन बढ़ रही है.
ध्यान दीजिये आपने जो लिया उससे ज्यादा दिया, जिसकी वजह से बैंक और व्यापारी का मुद्रा भण्डार बढ़ा और उनके पास और चीजें खरीद सकने या कर्ज दे सकने की क्षमता आई. आपने जो दिया वह एक मूल्यहीन और आभासी वस्तु थी जिसे आपने किसी के श्रम कर के प्राप्त किया था लेकिन आपको जो मिला वह आभासी वस्तु नहीं है. वह जिन चीजों से बना है वे धरती से आयी हैं, लोहा, रबर, ताम्बा, एल्युमीनियम सभी कुछ.
अंधाधुंध उत्पादन और खपत बढ़ने से (क्योंकि सब कुछ बढाते जाना ही हमारा लक्ष्य है क्योंकि वही हमारे लिए प्रगति है), और फियट करेंसी के बदले सब कुछ उपलब्ध होने से प्राकृतिक सम्पदा से धरती दिन रात खाली होती जा रही है, जल संसाधन सूखते और दूषित होते जा रहे हैं, हरियाली कम हो रही है, ठीक हवा तक उपलब्ध नहीं है.
ऊपर से सरकारों और व्यापारियों का गठजोड़ आपको अधिक से अधिक खर्च के लिए उकसा रहा है, सस्ते कर्ज देने की बात कर रहा है. इसलिए आपकी अर्जित आभासी, मूल्यहीन मुद्रा हो या बस्तुएं उन दोनों की खपत सीमित कीजिये, नहीं तो बैंक और व्यापारी (सरकारों का नाम इसलिए नहीं लिए क्योंकि सरकारें आपकी नहीं उन्ही की हैं) मिलकर धरती की सारी प्राकृतिक सम्पदा लूट कर आखिर में आपको भी नंगा ही कर देंगे.
इसलिए अब ठेंगा दिखाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

ठेंगा दिखाने का कारण -2
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वे कहते हैं --”हमारे लिए काम करो, बदले में हमसे कागजी या डिजिटल मुद्रा लो, हमारी ही बातें सुनो, जो हम समझायें वही समझो, जो हम कहें वही तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि हमारे एक्सपर्ट, हमारे फ़िल्मी हीरो, हमारे खिलाडी हीरो, और हमारे बाबा, हमारे ज्योतिषी तुम्हारी जिंदगियों के बारे में तुमसे ज्यादा जानते हैं. हजारो सालों से संचित पारंपरिक ज्ञान कुछ नहीं है, तुम्हारे बुजुर्ग कुएं के मेढक थे, तुम दुनिया के समंदर की मछली बन जाओ, आओ हमसे मिलो हम बड़ी मछलियाँ हैं तुम्हारी हिफाजत हम करेंगीं. इसलिए जो हम बनाएं वो उसी हमारी दी हुयी मुद्रा से खरीदो. जरा जल्दी-जल्दी खरीदो. स्पीड बहुत जरुरी है, सुस्ती ठीक नहीं काम में सुस्ती, खर्च में सुस्ती, दौड़ते रहो तुम्हे आगे जाना है, यह मत पूछो किससे आगे, आगे जाओगे तो पता चल जायेगा.
है न मजेदार बात? गोल-गोल दुनिया में सीधी चाल से दौड़ते रहो !
वे फेंकते रहे तुम लपेटते रहो.
वे अपनी कागजी मुद्रा में (जिसकी कुल औकात एक पोस्ट डेटेड चेक जैसी है जो कभी बैंक में भुनाया नहीं जायेगा) स्पीड चाहते हैं. वे अपनी डिजिटल मुद्रा में भी स्पीड चाहते हैं. जिससे तेजी से आवाजाही में वह फिन्टती रहे और मलाई उतर कर उनके पास जाती रहे.
तेजी से मुद्रा फेंटने के चक्कर में आप अपनी जिंदगी नहीं जी पा रहे हैं. आपके बीच से मनुष्यता का पानी सूखता जा रहा है. फर्जी मूल्य हमारे बीच में प्रतिष्ठित हो रहे हैं. समाज में प्रेम और सहयोग के बदले स्पर्धा को महत्त्वपूर्ण स्थान मिल रहा है. एक दूसरे को काट कर अपने को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ है.
कोई यह नहीं बताता, कोई यह नहीं समझता कि पिरामिड के शीर्ष पर जो नहीं पहुंचे (और बहुत लोग नहीं ही पहुचेंगे क्योंकि यह संभव भी नहीं है) उनको भी जीने का उतना ही अधिकार है. एक फालतू से संघर्ष में जूझते हुए हम यह अपनी नहीं किसी और की लडाई लड़ रहे है. इसमें हमारे साथ ही हमारा विरोधी भी हारेगा और जीतेगा कोई और! बड़ी महिमा इस बात की भी गई जाती है कि जीवन संघर्ष है.
खुशहाल जिंदगी को संभव बनाने वाले साधन छिनते जा रहे हैं, समय भी छिनता जा रहा है हमारे पास एक दूसरे के लिए समय नहीं बचा तो समाज कैसे बचेगा? कलाएं और संस्कृतियाँ और भाषाएँ कहाँ बचेंगी ? जीवन में विविधता कहाँ बचेगी? रंग कहाँ बचेंगे?
याद पड़ता है कि पिछली बार कब आप फुर्सत में अपने आत्मीय संबन्धों में उतर पाए? जीवन को महसूस कर पाए?
इसलिए भी उन्हें अब ठेंगा दिखाने की सख्त जरूरत है !

1 comment:

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