Saturday, January 21, 2017

एक राष्ट्र का फर्जी पति

अमेरिका में प्रेसिडेंट का चुनाव सिर्फ तमाशा है ,,, चुनाव के दौरान तामाशा और उसके बाद भी तमाशा ही होता है .... आज से नहीं कई दशकों से.
छुटके जार्ज बुश के दौरान फ्लोरिडा में हुयी चुनाव की धांधली के विरोध में तो शपथ ग्रहण के लिए जाते हुए उनका रास्ता तक जाम कर दिया गया था. ट्रम्प के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोगों का तमाशा उसी क्रम में समझा जाना चाहिए, जिसका न कोई असर है, न परिणाम. आम अमरीकी की वहां के लोकतंत्र में कोई भागीदारी नहीं है. यह सब फेडेरल रिजर्व पर हावी बैंकरों और वाल स्ट्रीट के कारिंदों का खेल है जिसे वे ही दोनों तरफ से खेल रहे हैं. जिसको वे चाहे कान पकड़कर आगे ले आते हैं और अमरीका वालों से बोलते है देखो ये रहा तुम्हारा प्रेसिडेंट- अब इसी से चार साल काम चलाओ.
देश के लिए सभी आर्थिक निर्णयों को प्रभावित करने वाले पदों पर भूतपूर्व बैंकर ही नियुक्त होते आये हैं और यह नियुक्ति प्रेसिडेंट ही करता रहा है. रूसवेल्ट के बाद सभी राष्ट्रपति बैंकरों और कंपनियों के हाथ के खिलौने ही साबित हुए हैं और जिसने भी अलग हटने की कोशिश की उसे केनेडी की आसानी से हटा दिया गया.
2007-2008 की आर्थिक तबाही और करदाताओं के 600 बिलियन डॉलर की बेल आउट मनी को सोख लेने के बाद ओबामा को गमले में बाकायदा रोपा गया क्योंकि बुश के ज़माने से संचित जनाक्रोश को शांत करने के लिए यह स्क्रिप्ट की मांग थी. और वैसे भी जनता जुटे खाकर थक चुकी थी और प्याज खाने की मांग कर रही थी. यानी यह पारी वैसे भी किसी डेमोक्रेट को दी जानी थी. रियल एस्टेट स्कैम में सबसे ज्यादा अश्वेत गरीब और निम्न मध्यवर्ग तबाह हुआ था और उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था इसलिए ओबामा की शक्ल में उनको एक उम्मीद परोसी गयी अपने आठ सालों के कार्यकाल में ओबामा ने उनके लिए क्या किया, अगर आपको पता हो तो बताएं.
अब रेपब्लिकन चाहिए था लेकिन लोगों में आक्रोश कायम था इस लिए खेल दूसरा खेला गया. अब कोई ऐसा चेहरा चाहिए था जो थोडा excitement बनाये और मूल विषयों से ध्यान भटकाए, इसलिए ट्रम्प को वास्तव में सिर्फ जनता को इधर उधर हिलाने डुलाने और भ्रमित करने का अजेंडा देकर कुर्सी सौंपी गयी है. ऊंची ऊंची और आलतू फालतू बातों से यह जोकर सिर्फ जनता को बहलायेगा किसी घटिया फिल्म के प्लाट की लाइन पर. न मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनेगी और न अमरीकी आउटसोर्सिंग कम होगी. ये सब नारे थे जिनकी आड़ में जनता को ठगा गया. जब तक अमरीका के बाहर सस्ती दर पर मजदूर मिलते रहेंगे, अमरीकी इलेक्ट्रोनिक्स कंपनियों के सामान ताईवान और चीन में बनेगे और कपडे भारत, बांग्लादेश, पकिस्तान और चीन में सिले जायेंगे. यही नहीं भारत पाकिस्तान और बंगलादेशी छोकरे छोकरियाँ मुंह में पेन्सिल रख कर अमरीकी एक्सेंट में अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करते हुए, यहाँ के कॉल सेंटर्स को भी आबाद रखेंगे. रूस को अपना दुश्मन घोषित करना दरअसल वह चाल है जिसकी आड़ में बाकी जुमले दबा दिए जायेंगे या दब जायेंगे.
ट्रम्प को लाने के लिए सबसे पहले एक बढ़िया मनोवैज्ञानिक मार्केटिंग टूल का भी इस्तेमाल किया गया जिसको मैं maximum visibility and high recall imprint on target memory कहता हूँ और मैंने खुद इसका इस्तेमाल अपने एडवरटाइजिंग केरियर में किया है. इसमें किसी भी की तरह से प्रोडक्ट का नाम और छाप पब्लिक विज़न में बनाये रखा जाता है चाहे इसके लिए किसी विवाद का ही सहारा लेना पड़े. इसमें प्रोडक्ट की ब्रांड इमेज की परवाह न करते हुए सिर्फ उसका नाम अधिकतम बार रिपीट करना या करवाना होता है. ब्रांड इमेज बाद के ट्रीटमेंट से सुधार ली जाती है.
अमेरिका के चुनाव में भी ट्रम्प से कई विवादित बयान दिलवा कर यही किया गया और हिलेरी के समर्थक उसके शिकार हो गए. हुआ यह कि विवादित बयान देने से ट्रम्प का नाम हिलेरी से ज्यादा खबरों में बना रहा और जवाब में उसके विरोधियों ने भी उस पर व्यक्तिगत प्रहार कर के उसी का नाम अधिकतम बार प्रसारित होने में मदद की और ट्रम्प को मैक्सिमम विजिबिलिटी बेनिफिट दिलाई. लेकिन जब यह तकनीक वोट्स को मोड़ने में कामयाब नहीं हुयी तो फिर वह आखिरी जुगाड़ अपनाया गया जो 1824 से अबतक पांच बार अपनया जा चुका है.
वैसे तो हर पचास अमरीकी राज्यों के चुने गए इलेक्टर्स अपनी ही पार्टी के प्रेसिडेंट को चुनते हैं और ऐसा करने का उन्हें संवैधानिक निर्देश भी है लेकिन अमरीका में 21 राज्य ऐसे हैं जिनमे इस बारे में कोई स्पष्ट क़ानून नहीं है. बैंकर और कंपनियों के दलाल मनमुताबिक प्रेसिडेंट का चुनाव असफल होते देख इसी बात का फायदा उठाते हुए इन राज्यों के इलेक्टर्स को अपने पक्ष में पटा लेते हैं और उनका एजेंडा चलता रहता है. अगर यहाँ भी बात न बनी तो अपर हाउस बहुमत से प्रेसिडेंट चुनता है और यह कोई छिपी बात नहीं है की अमरीकी अपर हाउस किस वर्ग के लोगों से भरा पड़ा है. एक और ख़ास बात है कि आज दोनों अमरीकी सदनों में जितने सदस्य हैं उसके चार गुने बैंकरों और वाल स्ट्रीट के दलाल उनके पीछे 365 दिन सक्रिय रहते हैं.
इस तरह अमरीकी प्रेसिडेंट के चुनाव में जनता के बहुमत को ट्रम्प करके करके अपना मन मुताबिक जमूरा इंस्टाल करने के लिए त्रिस्तरीय जुगाड़ भिड़ा भिड़ाया है जो कई दशकों से अच्छा प्रदर्शन कर रहा है.
दुनिया भर में इसी अमरीकी ब्रांड की डेमोक्रेसी बाँटी जा रही है, और हमारे महान देश को भी इसका प्रसाद मिलता ही रहा है!


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